5 सालों से सरकारी मदद की आस में भटक रहा गोलियों से घायल यह जवान, पढ़ें इनकी कहानी

मुरैना, मध्यप्रदेश के तरसमा गांव निवासी सीआरपीएफ जवान मनोज तोमर की जिंदगी मौत से भी बदतर हो गई है। मार्च 2014 में छत्तीसगढ़ की झीरम घाटी में नक्सली मुठभेड़ में वे गंभीर रूप से घायल हो गए थे। पेट में सात गोलियां लगीं, जान बच गई, लेकिन बेहतर इलाज के अभाव में मनोज पेट से बाहर निकली आंत को पॉलीथिन में लपेटकर जीवन बिताने को मजबूर हैं।

गंभीर घायल होने की स्थिति में आंत को पेट में रखने का ऑपरेशन उस समय संभव नहीं था, इसलिए आंत का कुछ हिस्सा बाहर ही रह गया। अब इसका इलाज संभव है, लेकिन पैसों की कमी आड़े आ रही है। यही नहीं, गोली लगने से उनकी एक आंख की रोशनी भी जा चुकी है।

मनोज के मुताबिक उनकी शिकायत सीआरपीएफ से नहीं है बल्कि सरकार के नियमों से है। नियम कहता है कि वे छत्तीसगढ़ में ड्यूटी के दौरान जख्मी हुए थे इसलिए उनका उपचार अनुबंधित रायपुर के नारायणा अस्पताल में ही होगा, जबकि वहां पूर्ण इलाज संभव नहीं है। सरकार एम्स में आंत के ऑपरेशन और चेन्नई में आंख के ऑपरेशन का इंतजाम करवा सकती है, जो नहीं हो रहा है। मनोज नारायणा अस्पताल रायपुर में नियमित चेकअप के लिए जाते हैं, इसमें भी उन्हें परेशानी उठाना पड़ती है।