कितना मुमकिन है ईवीएम की जगह बैलेट पेपर पर वापस लौटना

तकनीक और उससे जुड़ी समस्याओं को जब राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के नजरिये से देखा जाता है तो समस्या सुलझने के बजाय उसके और उलझने का खतरा पैदा हो जाता है। इधर यूपी और बिहार में उपचुनावों में जीत हासिल करने के बाद भी जिस तरह से समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस ने भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के बजाय बैलट पेपर से चुनाव कराने की मांग नए सिरे से की है, उससे ईवीएम को खलनायक साबित करने का एक नया आधार तैयार होने लगा है। हालत यह है कि केंद्र में बैठी और ईवीएम के प्रयोग की पक्षधर रही भारतीय जनता पार्टी भी इसके दबाव में आ गई है और इसके वरिष्ठ नेता राम माधव यह कहने को मजबूर हुए हैं कि अगर सभी दल ऐसा चाहते हैं तो ईवीएम की जगह बैलट पेपर के इस्तेमाल पर विचार किया जा सकता है। जहां तक चुनावी नतीजों को प्रभावित करने के मकसद से ईवीएम में छेड़छाड़ के आरोपों का सवाल है तो ऐसे कई वाकयों का हवाला दिया जाता है।

वर्ष 2010 में बीजेपी नेताओं क्रमश: किरीट सोमैया और देवेंद्र फडनवीस (जो अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं) एंटी-ईवीएम कहे गए आंदोलन के एक ऐसे कार्यक्रम में उपस्थित हुए थे, जिसमें हैदराबाद के एक इंजीनियर हरिप्रसाद ने यह दिखाया था कि कैसे विभिन्न चरणों में ईवीएम में दर्ज नतीजों में हैकिंग के जरिये फेरबदल की जा सकती है। पिछले साल महाराष्ट्र नगरपालिका चुनावों में भी ईवीएम के जरिये धांधली की शिकायत की गई थी। नासिक, पुणे और यरवदा आदि निर्वाचन क्षेत्रों में ईवीएम को लेकर गड़बड़ी की शिकायतें दर्ज कराई गई थीं। इन घटनाओं और शिकायतों के मद्देनजर यह सवाल बार-बार उठता रहा है कि क्या टेंपरिंग-प्रूफ कहलाने वाली ईवीएम में किसी किस्म की छेड़छाड़ मुमकिन है? उल्लेखनीय है कि मई, 2010 में अमेरिका के मिशीगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दावा किया था कि उनके पास भारत की ईवीएम मशीनों को हैक करने की क्षमता है। इन शोधकर्ताओं ने घर पर बनाई गई एक मशीन और मोबाइल फोन की मदद से ईवीएम में दर्ज नतीजों को बदलने की क्षमता का प्रदर्शन भी किया था।