मोटे अनाजों को प्रोत्साहन देगी सरकार, मनाया जाएगा ‘पौष्टिक धान्य वर्ष’

मोटे अनाज को लोकप्रिय बनाने के लिए सरकार चालू वर्ष 2018 को ‘पौष्टिक धान्य वर्ष’ के रूप में मनायेगी। मोटे अनाज जहां गरीबों की सेहत बनाने के लिए मुफीद साबित होंगे, वहीं इसकी मांग बढ़ने से किसानों के भाग्य खुलेंगे। विभिन्न जलवायु वाले क्षेत्रों में पैदा होने वाले मोटे अनाज वर्ग की सभी फसलों को प्रोत्साहित करने के लिए इसे दो हिस्सों में बांट दिया गया है। कृषि मंत्रालय की सलाहकार समिति की बैठक में कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने यह जानकारी दी।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत पहले से ही मक्का और जौ की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। लेकिन इस मिशन के दायरे को बढ़ा दिया गया है। इसमें अब ज्वार, बाजरा, रागी, कुटकी, कोदो, सावां, कांगनी और चीना को शामिल कर लिया गया है। कृषि मंत्री सिंह ने बताया कि इन मोटे अनाज वर्ग की ज्यादातर फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित किया जा रहा है। सरकार इनकी खरीद भी क्षेत्रीय जरूरतों के आधार पर कर रही है। कई राज्यों की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में इन फसलों की उपज का वितरण किया जाता है।

पौष्टिक धान्य वाली फसलों में शुमार मोटे अनाज वर्ग की ज्वार, बाजरा, रागी, कुटकी, कोदो, कांगनी, सांवा व चीना प्रमुख हैं। पौष्टिक तत्वों से भरपूर इन फसलों की खेती को सरकार भरपूर समर्थन दे रही है। किसानों को उन्नत किस्म की प्रजाति वाले बीजों की आपूर्ति के साथ उपज की खरीद का पुख्ता बंदोबस्त किया जाएगा। कृषि मंत्री ने कहा कि इन फसलों की विशेषता यह है कि असिंचित क्षेत्रों में इनकी खेती सहजता से हो सकती है। जलवायु परिवर्तन का बहुत असर इनकी खेती पर नहीं पड़ेगा। गेहूं व धान की खेती के मुकाबले मोटे अनाज की फसल की लागत जहां कम लगती है, वहीं आज के जमाने में मोटे अनाज की मांग बढ़ रही है।

देश की आधी खेती असिंचित क्षेत्रों में ही होती है। पौष्टिक धान्यों की खेती पर्वतीय व जनजातीय क्षेत्रों में परंपरागत तौर पर होती है। इनमें आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना राज्य शामिल हैं। हरित क्रांति से पहले इन फसलों की खेती 3.7 करोड़ हेक्टेयर में होती थी, लेकिन बाद में इनकी खेती का दायरा सिमट कर 1.47 करोड़ हेक्टेयर रह गया। ज्यादातर क्षेत्रों में गेहूं व चावल की खेती होने लगी। नतीजतन, महिलाओं व बच्चों में प्रोटीन, विटामिन ए, आयरन और आयोडीन जैसे पोषक तत्वों की भारी कमी हो गई है। इनकी खेती को प्रोत्साहन से गरीबों को पौ