सायनाइड का टेस्ट नहीं पता, हम बताते हैं !

 

ख़बरें अभी तक |सायनाइड इतना खतरनाक ज़हर है कि इसका टेस्ट किसी को पता नहीं चलता. क्यूंकि टेस्ट को बताने से पहले से ही बताने वाले की मृत्यु हो जाती है.

एक बंदे ने सायनाइड का टेस्ट पूरी दुनिया को बताने के लिए अपनी जान की कुर्बानी देने की सोची. पेन कॉपी लेकर बैठ गया. एक हाथ में पेन दूसरे में सायनाइड. एक हाथ से सायनाइड मुंह में डाला दूसरे से लिखना शुरू किया –

बस अंग्रेजीं का अक्षर एस(s) ही लिख पाया और मर गया. अब अंग्रेजी के एस अक्षर से कितने ही टेस्ट आते हैं –

Sweet – मीठा
Sour – खट्टा
Salt – नमकीन

तो आज तक पता नहीं चल पाया कि सायनाइड का टेस्ट कैसा है. बस यही पता चल पाया कि सायनाइड का टेस्ट अंग्रेजी के एस(s) अक्षर से शुरू होता है.

आपने भी कभी न कभी बचपन में या बड़े होकर ये दो कहानियां सुनी ही होंगी. लेकिन क्या ये सच हैं?

देखिए यदि मुझसे निजी तौर पर कहा जाए तो मुझे लगता है कि ये कहानियां अक्षरशः झूठ हैं. जो भी हो, लेकिन ये शायद हमारे बचपन का सबसे उलझा और रहस्यमयी सवाल था. हमने इस सवाल का उत्तर ढूंढने की कोशिश की है जो आपके साथ शेयर करते हैं.

‘साइनाइड’ को एक अम्ब्रेला टर्म कहा जा सकता है. अंब्रेला टर्म मतलब ‘साइनाइड’ उन पदार्थों का ग्रुप है जिनमें कार्बन-नाइट्रोजन (सीएन) बॉन्ड होता है.

जिस तरह सभी सांप लीथल या घातक नहीं होते, वैसे ही सभी तरह के साइनाइड भी ज़हर नहीं होते.

सोडियम साइनाइड (NaCN), पोटेशियम साइनाइड (KCN), हाइड्रोजन साइनाइड (HCN), और साइनोजेन क्लोराइड (CNCl) घातक हैं, लेकिन नाइट्राईल्स नाम के ढेरों यौगिक साइनाइड होते हुए भी ज़हर नहीं होते. बल्कि कई नाइट्राईल्स तो दवाइयों में यूज़ होते हैं. नाइट्राईल्स के खतरनाक न होने का कारण केमिस्ट्री में छुपा हुआ है, लेकिन अभी हमें केमिस्ट्री नहीं सालों, इन फैक्ट सदियों, से चली आ रही मिस्ट्री को सॉल्व करना है.

# बायोलॉजी

दरअसल साइनाइड, हमारे शरीर की कोशिकाओं और ऑक्सीजन के बीच दीवार का काम करता है. और हमारे शरीर की कोशिकाओं को ऑक्सीजन नहीं मिलेगी तो कोशिकाएं ज़्यादा देर तक जीवित नहीं रह पाएंगी. और कोशिकाएं, जिनसे मिलकर हमारा शरीर बना है, जीवित नहीं रहीं तो शरीर भी मृत.

अगर साइनाइड अपने प्योरेस्ट फॉर्म में अंदर ले लिया जाए तो सेकेंडों में व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है. मिर्गी के दौरे, कार्डिएक अरेस्ट, कोमा वगैरह के बाद, के साथ या उस सबसे पहले ही. और अगर इसकी कम मात्रा ली जाए या प्योर फॉर्म के बजाय किसी में डायल्यूट होकर आए बेहोशी, कमजोरी, चक्कर आना, सिरदर्द, भ्रम की स्थिति और सांस लेने में कठिनाई हो सकती है.

अब कम मात्रा, अधिक मात्रा एबस्ट्रेक्ट टर्म हैं, इसलिए स्पेसिफिकली बात करें तो 0.5–1 mg प्रति लीटर माइल्ड, 1–2 प्रति लीटर मोडरेट, 2–3 mg प्रति लीटर गंभीर और 3 mg प्रति लीटर से अधिक सायनाइड जानलेवा साबित होता है.

यानी ये बात कि जीभ से साइनाइड का संपर्क होते ही मृत्यु हो जाती है बेशक ग़लत है लेकिन यदि एक लिमिट से अधिक और अपने प्योर फॉर्म में ये ली जाए तो, जैसा कि ऊपर कहा, बस चंद सेकेंड लगते हैं, ‘है’ से ‘था’ होने में.

मैथ्स

पहले तो हमें ये समझना होगा कि साइनाइड किसी की हत्या करने के लिए या आत्महत्या के कम यूज़ किया जाता है. एक रिपोर्ट के अनुसार 2013 में पूरी दुनिया में केवल आठ लोगों का मर्डर सायनायड के थ्रू हुआ था.

लेकिन फिर भी उस वर्ष कुल तीन सौ लोग सायनायड से मर गए थे. क्यूं? क्यूंकि हमारी रोजमर्रा की इस्तेमाल की जाने वाली चीज़ों में, खाने पीने वाली चीज़ों में भी सायनायड होता है और हम एक्सीडेंटली उसका सेवन कर लेते हैं या सांसों के माध्यम से उसे इन्हेल कर लेते हैं. सेब के बीज में सायनायड होता है, ये तो उन सभी को पता होगा जिन्होंने श्रीदेवी की मूवी मॉम देखी होगी.़ॉ

फिर भी हम सेब के बीजों से नहीं मरते क्यूंकि यदि गलती से हम बीजों को निगल भी लें तो भी बीजों की बाहरी लेयर इतनी ठोस होती है कि अंदर का सायनाइड बाहर नहीं आ पाता. पाचन क्रिया के दौरान भी पूरा बीज हमें बिना नुकसान पहुंचाए मल के साथ बाहर आ जाता है और हम बच जाते हैं. कई और भी चीज़ें हैं जिसमें थोड़ा बहुत सायनायड पाया ही जाता है और कभी-कभी जानलेवा साबित हो जाता है. कुछ चीज़ें जिनके नाम अभी याद आ रहे हैं – बादाम, प्लास्टिक या कोयले का जलना, सेब के बीज, सिगरेट, दूषित पीने का पानी, भोजन, पेस्टेसाइड आदि.

साइनाइड का यूज़ तबसे हो रहा है जब पता भी नहीं था कि ये ‘ज़हर’ साइनाइड है. और ज़हर का इस्तेमाल तो आज से साढ़े छः हज़ार वर्षों पूर्व से होता आ रहा है. जब हम ‘साढ़े छः हज़ार’ साल की बात कर रहे हैं तो हम उस ज़हर की बात कर रहे हैं जो एक व्यक्ति दूसरे को जानबूझकर खिलाता है या आत्महत्या करने के लिए खुद खाता है. वरना ज़हर प्रकृति में तो पहले से ही विद्यमान था, और मानव सभ्यता शुरू होने के साथ ही, अंजाने में ज़हर खा या सूंघ लेने से मृत्यु होती रही होंगी. भारत में ‘ज़हर’ शब्द का इस्तेमाल चाणक्य ने 350 इसवी पूर्व ही अपने लेखों में कर लिया था. लेकिन उससे पहले सुश्रुत (भारत के एक प्रसिद्ध वैदिक चिकित्सक जिन्हें शल्य चिकित्सा का जनक भी कहा जाता है) ने लगभग 600 ईस्वी पूर्व ‘धीमे ज़हर’ और ‘धीमे ज़हर’ को बनाने और प्रयोगों की पूरी प्रोसेस समझा दी थी.

साइनाइड की स्पेसिफिकली बात करें तो नाज़ियों के कंसंट्रेशन कैंप में इसी (हाइड्रोजन साइनाइड) का इस्तेमाल मास-मर्डर के लिए किया जाता था गैस चैंबर में. इसका व्यवसायिक नाम था ज़ायक्लोन बी.

अभी-अभी रूस पर एक डबल एजेंट की हत्या का आरोप लगा है. उसमें साइनाइड का यूज़ तो नहीं किया गया, लेकिन हम रूस की बात इसलिए बता रहे हैं क्यूंकि अतीत में रूस साइनाइड का इस्तेमाल हत्याओं और बहुतायत से करता आया है. बाकी हादसों वगैरह में तो साइनाइड लोगों की मृत्यु का कारण बनती ही है – जैसे कहीं आग लग जाए, कोई ग़लती से दूषित चीज़ खा/पी ले, आदि.

साथ ही कई आतंकवादी संगठन, जैसे ‘लिट्टे (एलटीटीई)’ आदि अपने गले में सायनाइड से भरा हुआ लॉकेट बांध के रखते थे ताकि पकड़े जाने की स्थिति में वो उसे खाकर तुरंत मृत्यु का प्राप्त हो सकें.

# आउट ऑफ़ सिलेबस

अगर हमने अभी तक के लेख को ध्यान से पढ़ा होगा तो हमें थोड़ा बहुत हिंट मिल गया होगा कि साइनाइड का स्वाद कैसा होता है. साइनाइड का स्वाद कड़वा या मैटलिक होता है.

हमने पहले कहा था कि बादाम में कम मात्रा में साइनाइड होता है. अब आपको ये तो पता ही होगा कि बादाम का स्वाद हल्का कड़वाहट लिया होता है और कुछ बादाम ज़्यादा कड़वे होते हैं. सेब के बीज भी कड़वे होते हैं.

 

एक बात और. ऊपर जो कहानियां बताई गईं थीं उसमें से दूसरी कहानी कुछ हद तक सही है. ऑस्ट्रेलिया के एक प्रतिष्ठित न्यूज़ पोर्टल संडे मॉर्निंग हेराल्ड के अनुसार 2006 में एक भारतीय ने सुसाइड करने के लिए साइनाइड खा लिया था. उसे बचाया तो नहीं जा सका लेकिन उसने अपने सुसाइड नोट में लिखा था –