आज बरसाना में लट्ठमार होली खेलने पहुंचेंगे CM योगी

खबरें अभी तक। रसराज पण्डित जसराज के मोहक गायन से ब्रज की होली के प्रतीक ब्रज रसोत्सव की शुरुआत हुई. पंडित ने अपने शिष्यमण्डल और साथी कलाकारों के साथ होली के गीतों से जनता को ओत-प्रोत कर दिया.

पहले उन्होंने राग बिहाग की बंदिश, देखो मोरी रंग में भिगोय डारी. मोरी नई रे चुनरिया. तो मानो चूनर तो सभी की भीग गई भाव के रंगों में. गाई फिर उन्होंने राग आदि बसन्त में फाग का पद ‘लाल गुपाल गुलाल हमारी आंखिन में जनि मारो जू!’ का गायन किया.

समारोह के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी उपस्थिति दर्ज कराई और लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि रसोत्सव की जगह यमुना के विश्रामघाट से बदलकर वेटनरी यूनिवर्सिटी ग्राउंड करने को लेकर उन्हें भी अफसोस है. योगी ने कहा कि पंडित जसराज जी की इच्छा थी कि वो ब्रज में यमुना तट पर कृष्णलीला के पद गाएं. सरकार उनकी ये इच्छा पूरी के लिए हरसंभव प्रयास करेगी.

मौके पर मौजूद हेमा मालिनी ने कहा कि, ‘कृष्ण ने पूरे भारत को जोड़ा है. पंडित जसराज जी ने भी कृष्ण को गाकर भारत की सांस्कृतिक एकता मज़बूत की है.’ मस्ती से भरे इस त्योहार को ब्रज भूमि में मनाने की बात ही अलग है. आज भी यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ सहित दो और राज्यों के मुख्यमंत्री होली खेलने बरसाना पहुंचेंगे.

ब्रजवासी भी अपने इस त्योहार को मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. लठ्ठमार होली केवल आनंद के लिए ही नहीं बल्कि यह नारी सशक्तीकरण का भी प्रतीक है. श्रीकृष्ण महिलाओं का सम्मान करते थे और मुसीबत के समय में हमेशा उनकी मदद करते थे. लठ्ठमार होली में श्रीकृष्ण के उसी संदेश को प्रदर्शित किया जाता है.

थोड़े से चुलबुले अंदाज में महिलाएं लठ्ठमार होली में अपनी ताकत का प्रदर्शन करती हैं. ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ राधा से होली खेलने के लिए बरसाना आया करते थे. लेकिन राधा जी अपनी सहेलियों के साथ बांस की लाठियों से उन्हें दौड़ाती थीं. तभी से लठ्ठमार होली बरसाना की परंपरा बन गई.

बरसाना में होली के बाद अगले दिन नंदगांव का नंबर आता है. बरसाना के पुरुष नंदगांव की महिलाओं के साथ रंग खेलने पहुंचते हं लेकिन उनके साथ लिया जाता है मीठा सा बदला. महिलाएं उन्हें लाठियों से मारती हैं. रंग, गुलाल, मिठाई और उल्लास में सराबोर हुई भीड़. महिलाएं मारती हैं लठ्ठ और गांव के सारे कन्हैया खुद को बचाते हुए उन्हें रंग लगाने की फिराक में रहते हैं. इस वक्त यहां की फिज़ाओं में उड़ता है रंग, गुलाल के साथ बचपना, आनंद.