बॉलीवुड के इन 5 दिग्गजों की फ्लॉप रही सियासी पारी, अब तमिलनाडु में रजनी-कमल की बारी

खबरें अभी तक।  दक्षिण भारत की सियासत इस वक़्त गर्माई हुई है। साउथ के दो दिग्गज सितारे राजनीति के रंगमंच पर अपनी अदाकारी का जलवा दिखाने के लिए बेताब हो रहे हैं। ये सितारे हैं रजनीकांत और कमल हासन। पिछले रविवार को इनकी मुलाक़ात ने तमिललाडु की राजनीति में हलचल मचा दी है।

इन दो महान कलाकारों की मुलाक़ात का राजनीतिक भविष्य क्या होगा, ये कहना तो फिलहाल मुश्किल है, पर हिंदी सिनेमा के कुछ ऐसे सितारे ज़रूर हैं, जो सियासत के आसमान में ज़्यादा देर तक चमक बरक़रार ना रख सके। इस रिपोर्ट में ऐसे ही 5 महानायक, जो सिनेमा से सियासत की तरफ़ गये, मगर ज़्यादा देर तक टिक ना सके।

 राजेश खन्ना

राजेश खन्ना जैसा स्टारडम हिंदी सिनेमा के किसी सुपरस्टार ने नहीं देखा और भविष्य में इसकी संभावना भी कम है। मगर, राजनीति के मंच पर राजेश खन्ना फ्लॉप एक्टर साबित हुए। कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीतकर राजेश खन्ना 1992 से 1996 कर नई दिल्ली के सांसद रहे, मगर सियासत की पारी लंबी नहीं चली।

 

हिंदी सिनेमा के पर्दे पर नायक के नए तेवर पेश करने वाले अमिताभ बच्चन ने सियासत में क़िस्मत आज़मायी और इलाहाबाद से रिकॉर्ड मतों से लोकसभा चुनाव जीता भी, मगर तीन साल बाद ही अमिताभ बच्चन को अहसास हो गया कि राजनीति के वो कभी सुपरस्टार नहीं बन सकते। बच्चन ने इस्तीफ़ा देकर सियासत छोड़ दी।

धर्मेंद्र

धर्मेंद्र का फ़िल्मी सफ़र जितना शानदार रहा, उनका पॉलिटिकल करियर उतना ही आलोचनाओं का शिकार बना। धर्मेंद्र ने 2004 में बीकानेर से भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीता, मगर संसद में ग़ैरहाज़िरी के लिए उन्हें क्रिटिसाइज़ किया जाता रहा। धर्मेंद्र ने इसके बाद राजनीति छोड़ दी।

गोविंदा

गोविंदा ने हिंदी सिनेमा में अपनी कॉमिक टाइमिंग से फ़ैंस का ख़ूब मनोरंजन किया है, मगर जब इस स्टारडम को राजनीति में करियर बनाने के लिए इस्तेमाल किया तो ट्रैजडी हो गयी। 2004 में गोविंदा ने कांग्रेस के टिकट पर मुंबई की विरार कांस्टिचुएंसी से लोकसभा चुनाव लड़ा, जीते भी, मगर उनका कार्यकाल काफ़ी विवादों भरा रहा। 2008 में गोविंदा ने अपने पॉलिटिकल करियर के क्लाइमेक्स का एलान कर दिया।

संजय दत्त

संजय दत्त के पिता सुनीत दत्त कामयाब राजनेता थे। उनकी बहन प्रिया दत्त भी राजनीति में सक्सेसफुल रही हैं। मगर, संजय पॉलिटिक्स में फ्लॉप रहे। उन्होंने 2009 के लोकसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के टिकट पर नामांकन करवाया मगर अदालत ने उनके कंविक्शन को सस्पेंड करने के इंकार कर दिया, जिसके चलते चुनाव नहीं लड़ सके। उन्हें पार्टी का महासचिव बनाया गया, मगर 2010 में संजय ने पद और पार्टी छोड़ दी।

राहुल रॉय ने ज्वाइन की बीजेपी

अब नब्बे के दशक में पर्दे पर ‘आशिक़ी’ करके छा जाने वाले एक्टर राहुल रॉय सियासत से इश्क़ करने चले हैं। पिछले साल नवंबर में राहुल ने दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ले ली। राहुल का फ़िल्मी करियर बहुत शानदार नहीं रहा है। ‘आशिक़ी’, ‘फिर तेरी कहानी याद आयी’ के अलावा कुछेक को छोड़कर उनके करियर में एक भी फ़िल्म ऐसी नहीं है, जिसे याद रखा जाए। बहरहाल, राहुल की सियासी पारी कितनी लंबी चलेगी ये कहना तो फ़िलहाल मुश्किल है, मगर बॉलीवुड में ऐसे लोग कम ही हैं, जिन्होंने एक्टिंग का स्टारडम सियासत में भी देखा हो।